Pics of medha patkar biography in hindi
हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग होते हैं जिन्हें हम समाज का स्तंभ कह सकते हैं। वे आशा की किरण होते हैं उन तमाम लोगों के लिए जिनके हक़ों को छीनने के लिए एक से बढ़कर एक ताकतवर लोग घात लगाए बैठे रहते हैं। विस्थापन का दर्द झेल रहे ऐसे ही हज़ारों-लाखों लोगों के हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाली एक महिला का नाम है मेधा पाटकर। नर्मदा घाटी की आवाज़ मेधा पाटकर उर्फ़ मेधा ताई जानी मानी समाज सेविका मेधा पाटकर जी का जन्म 1 दिसम्बर 1954 को मुंबई (महाराष्ट्र) में हुआ था। इनके पिता श्री वसंत खानोलकर एक स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी मां का नाम इंदु खानोलकर था। मेधा ताई के व्यक्तित्व में झलकती धार उनके यशस्वी माता पिता से मिली है और उन्हीं की प्रेरणा से ही उन्होंने भी शोषित वर्ग के साथ मिलकर उनकी लड़ाई लड़ने की ठानी।
सामाजिक कार्यकर्ता बनने से पहले, उन्होंने रुइया कॉलेज, मुंबई से स्नातक किया और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) से सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर पूर्ण किया। इनकी ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण पड़ाव या यूं कहें कि जिंदगी का वह मोड़ जहां से इनके जीवन में बदलाव हुआ वह समय था 1985 का जब मेधा पाटकर ने डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे, जिन्हें लोग बाबा आमटे के नाम से जानते हैं उनके साथ ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ शुरू किया। इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव, चिखलदा से। नर्मदा घाटी के इस छोटे से गांव से शुरू हुए नर्मदा बचाओ आंदोलन में घाटी के आसपास रहने वाले आदिवासी तथा अन्य लोगों ने शामिल होकर आंदोलन को और मज़बूत किया। इस आंदोलन में वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, कलाकारों की भागीदारी भी शामिल है, जिन्होंने बांधों की अलोकतांत्रिक योजना और लाभों के अनुचित वितरण पर सवाल उठाया है। यह कहना गलत नहीं होगा कि 1990 का पूरा दशक नर्मदा आंदोलन से थरथराता रहा। मेधा पाटकर ने अपने करियर की शुरुआत मुंबई के स्लम में स्वच्छता को प्रमुख रूप से बढ़ावा देते हुए किया था। इसके बाद उन्होंने पांच साल तक विभिन्न संगठनों में काम किया तथा अगले तीन सालों तक गुजरात के जनजातीय जिलों के कल्याण के लिए काम किया।
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मेधा ताई ने भारत में नदियों को जोड़ने की रणनीति पर सवाल उठाया, जो सरकार के अनुसार देश में पानी की कमी से लड़ने के लिए एक उपाय था। जबकि उनका मानना था कि सरदार सरोवर बांध परियोजना नर्मदा घाटी में रहने वाले हज़ारों परिवारों को विस्थापित कर देगी। उन्हें इस तर्क पर कई लोगों का समर्थन मिला। इस लड़ाई को जीतने के लिए उन्होंने 22 दिनों तक उपवास किया और योजना का किरोध करती रही। साल 2005 में, मेधा पाटकर ने NAPM के तहत ‘घर बचाओ घर बनाओ’ आंदोलन की शुरुआत की, जिसने मुंबई में आवास अधिकारों के लिए संघर्ष को उजागर किया। आंदोलन की शुरुआत तब हुई जब 2005 में महाराष्ट्र की सरकार ने मुंबई के स्लम में करीब 75,000 घरों को ध्वस्त कर दिया, जिससे हजारों लोग बेघर हो गए।
मेधा ताई ने भारत में नदियों को जोड़ने की रणनीति पर सवाल उठाया, जो सरकार के अनुसार देश में पानी की कमी से लड़ने के लिए एक उपाय था। जबकि उनका मानना था कि सरदार सरोवर बांध परियोजना नर्मदा घाटी में रहने वाले हज़ारों परिवारों को विस्थापित कर देगी।
उन्होंने सिंगूर में टाटा नैनो कारों के निर्माण के उद्देश्य से निर्मित टाटा मोटर्स के एक कारखाने का भी विरोध किया जिसके फलस्वरूप, टाटा ने सिंगूर में निर्माण रोक कर गुजरात के साणंद में अपना कारखाना लगाया। साल 2007 में भी पश्चिम बंगाल के नंदीग्राम में जबरदस्ती जमीन कब्जाने के खिलाफ कई आंदोलन शुरू किए। हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन ने महाराष्ट्र में ‘लवासा’ नाम से एक बड़ी परियोजना शुरू की, जिसे पूरा किया जाना बाकी है। मेधा पाटकर ने लवासा के ग्रामीणों के साथ मिलकर इस परियोजना का विरोध किया, जिसमें कहा गया था कि इस परियोजना से किसानों के लिए मौजूद पानी की अत्यधिक मात्रा का उपयोग होगा। उन्होंने परियोजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की।
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साल 2013 में,उन्होंने महाराष्ट्र में हजारों घरों को ध्वस्त करने के सरकार के फैसले के खिलाफ एक और विरोध-प्रदर्शन शुरू किया। इस प्रदर्शन के पहले ही सरकार ने 43 परिवारों को उखाड़ फेंका था और 200 से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया था, लेकिन विरोध-प्रदर्शन का नतीजा था कि इससे कई लोग बेघर होने से बच गए। मेधा पाटकर के नेतृत्व में एक और लोकप्रिय विरोध शुरू हुआ, इसका उद्देश्य महाराष्ट्र में चीनी सहकारी क्षेत्र से बचाना था। उन्होंने आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम में कोववाड़ा परमाणु ऊर्जा परियोजना के प्रस्ताव का भी विरोध करते हुए कहा कि यह परियोजना पर्यावरण के साथ-साथ उस क्षेत्र के लोगों के लिए भी बड़ा खतरा होगी।
मेधा ताई ने जनवरी 2014 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी में शामिल होकर राजनीति में कदम रखा। उत्तर पूर्व मुंबई निर्वाचन क्षेत्र में केवल 8.9 प्रतिशत वोट प्राप्त करने के बाद वह लोकसभा चुनाव हार गई। इसके बाद उन्होंने 28 मार्च, 2015 को पार्टी छोड़ दी और समाज के हित के लिए अपने संघर्षों को जारी रखा। समाज के लिए कुछ कर पाने को, समाज के हित के लिए आवाज़ उठाने को ही वह अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानती हैं।
मेधा पाटकर को लोगों की भलाई के लिए उनकी अथक सेवाओं के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 1991 में, राइट लाइवलीहुड अवार्ड और 1992 में गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें बीबीसी, इंग्लैंड (1995) द्वारा बेस्ट इंटरनेशनल पॉलिटिकल कैंपेनर के लिए ग्रीन रिबन अवार्ड तथा एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स अवार्ड (जर्मनी) (1999) से भी सम्मानित किया गया। 1999 में ताई ने सतर्क भारत से एमए थॉमस नेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड भी अपने नाम किया।इसके अलावा उन्हें पर्सन ऑफ द ईयर, बीबीसी (1999), दीनानाथ मंगेशकर अवार्ड (1999), शांति के लिए कुंडल लाल अवार्ड (1999), महात्मा फुले अवार्ड (1999),भीमाबाई अंबेडकर अवार्ड (2013) और मदर टेरेसा अवार्ड से भी नवाज़ा जा चूका है। मेधा ताई का योगदान अविस्मरणीय है। मेधा ताई ने इस समाज में, हिंसा के ख़िलाफ़ हक की आवाज़ उठाकर एक नई उम्मीद के साथ तमाम उमंगों वाली नर्मदा प्रवाहित की है।
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तस्वीर साभार: DailyO
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शिखा सर्वेश
Shikha Singh is a community activist and feminist who pump up associated with the NGO ‘Nayi Subah’ that works for picture welfare of Women and Family tree.
She is also associated jiggle Narmada Bachao Andolan . Expert computer engineer by profession, she devotes equal time to visualize and writing blogs. She has post-graduate in Cyber Law, MCA, MSW and aims to unabridged her PhD in Social Go. She is an optimistic individuality who constantly takes jibe unease socio-political conditions of society.
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